ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने घोषणा की कि सितंबर 11 सैनिकों की वापसी की समय सीमा से पहले अफ़ग़ानिस्तान से आसन्न अंतर्राष्ट्रीय सैन्य वापसी के कारण, ऑस्ट्रेलिया 28 मई को काबुल में अपने दूतावास को बंद कर देगा। नतीजतन, देश में ऑस्ट्रेलिया की एकमात्र राजनयिक उपस्थिति आवासीय प्रतिनिधित्व के बजाय छिटपुट यात्राओं के माध्यम से होगी। उन्होंने कहा कि विदेश मामलों और व्यापार विभाग (डीएफएटी) के अधिकारी नियमित रूप से अफ़ग़ानिस्तान का दौरा करेंगे और ऑस्ट्रेलिया काबुल में अपने दूतावास को फिर से तभी खोलेगा जब स्थिति सामान्य हो जाएगी।
मॉरिसन ने उल्लेख किया कि यह राजनयिक वापसी देश में से अनिश्चित सुरक्षा वातावरण के कारण की जा रही है और टिप्पणी की कि "हमारी वर्तमान राजनयिक उपस्थिति का समर्थन करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था प्रदान नहीं की जा सकती।" हालाँकि, ऑस्ट्रेलियाई नेता ने कहा कि यह अफ़ग़ानिस्तान या उसके लोगों के प्रति ऑस्ट्रेलिया की प्रतिबद्धता को नहीं बदलता है और यह अन्य देशों के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और विकास का समर्थन करना जारी रखेगा।
इस बयान ने इस आलोचना को जन्म दिया है कि अगर इतने समय के बाद भी देश इतना असुरक्षित है कि सैन्य वापसी का मतलब है कि देश में राजनयिक अब सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो पिछले 20 वर्षों में क्या हासिल किया है। हालाँकि मॉरिसन का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया ने आतंकवादी समूहों के लिए आधार के रूप में शोषण से खुद को बचाने में अफ़ग़ानिस्तान की सहायता करने के लिए काम किया है, इसकी आसन्न सैन्य और राजनयिक वापसी कुछ और इशारा करती है।
लेबर पार्टी के विदेश मामलों के प्रवक्ता पेनी वोंग जैसे विपक्षी राजनेताओं ने कहा है कि वह निराश है कि अफ़ग़ानिस्तान में लगातार 20 वर्षों तक ऑस्ट्रेलियाई सैन्य, राजनयिक और विकास से जुड़े कामों के बाद, इस महत्वपूर्ण निर्णय पर कोई द्विदलीय परामर्श नहीं लिया गया।
मॉरिसन ने ऑस्ट्रेलिया के स्कूल नामांकन में महत्वपूर्ण सुधार, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच, राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी, जो 2001 में शून्य से बढ़कर 2020 में 27 प्रतिशत हो गई है पर अपनी ख़ुशी व्यक्त की। उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रसन्नता व्यक्त की कि मातृ मृत्यु दर और बाल कुपोषण में कमी आई है। हालाँकि, इस बात पर फिर भी सवाल उठ सकते है कि क्या यह लाभ देश में 20 साल की सैन्य उपस्थिति के बिना हासिल किए जा सकते थे और इस तरह दो दशक के युद्ध में शामिल होने के पीछे के उद्देश्य पर सवाल उठाया जा सकता है, जो ज़ाहिर तौर पर हिंसा, अस्थिरता और आतंकवाद से निपटने के अपने प्रमुख उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रहा है।
अधिकांश मामलों में पूरे ऑस्ट्रेलिया को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी भूमिका के पीछे की वजहों को दिखाना होगा जिसमें उसने अरबों डॉलर खर्च किए और 25,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया, जिनमें से कुछ को अब बर्खास्त कर दिया गया है या उनकी अफ़ग़ान कैदियों, नागरिकों सहित बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा के भीषण कृत्यों में भूमिका के लिए जांच जारी है।
इन चिंताओं को अफ़ग़ान अधिकारियों ने प्रतिध्वनित किया है, जिन्होंने एक बयान जारी करते हुए पूछा: "एक सवाल जो कुछ लोगों के मन में आ सकता है। ऑस्ट्रेलिया ऐसी स्थिति में अफ़ग़ानिस्तान क्यों छोड़ रहा है और उसने इस देश में 20 साल क्यों बिताए? "
ऑस्ट्रेलिया के दूतावास को बंद करने से अन्य देश भी ऐसा ही निर्णय ले सकते हैं, कई अंतर्राष्ट्रिता शक्तियों को चिंता है कि सितंबर में पूरी सेना की वापसी से तालिबान का उदय फिर से हो सकता है, जो पहले से ही कई सरकारी लक्ष्यों पर हमला कर रहा है। तालिबान ने अपनी ओर से राजनयिकों के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने की पेशकश की है। प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा है, कि अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी अमीरात सभी विदेशी राजनयिकों और मानवीय संगठनों के कर्मचारियों को आश्वासन देता है कि हम उनके लिए कोई खतरा पैदा नहीं करेंगे।" हालाँकि, इसने ऑस्ट्रेलिया जैसे शक्तियों की चिंताओं को किसी भी तरह से कम नहीं किया है।
इस सप्ताह का निर्णय ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मारिस पायने के काबुल जाने और राष्ट्रपति अशरफ गनी और महिला मामलों की मंत्री हसीना सफी और राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ मुलाकात के दो सप्ताह बाद आया है। अपनी तीन बैठकों के दौरान, पायने ने सेना की वापसी और शांति वार्ता, महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों में सुधार और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के समर्थन से अवगत कराया था।
उस समय, उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के राजनयिकों की वापसी का कोई संकेत नहीं दिया। दरअसल, काबुल में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत, पॉल वोज्शिचोव्स्की को इस वर्ष के 19 मार्च को ही उनके पद पर नियुक्त किया गया था, जो यह दर्शाता है कि उस समय ऑस्ट्रेलिया ने देश में एक निरंतर राजनयिक उपस्थिति की कल्पना की थी। इस सप्ताह की घटनाएं अन्य देशों के लिए भी काबुल में अपने दूतावासों को बंद करने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं, जिससे अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया को प्रभावित हो सकती है।