संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि लगभग दस लाख तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर दिया गया है और सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों में प्रवेश दिलवा के चीन की प्रमुख हान संस्कृति में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया है।
सोमवार को एक बयान में, तीन स्वतंत्र अधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि वह यह जानकर बहुत परेशान थे कि हाल के वर्षों में, तिब्बती बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय प्रणाली सरकार के "अनिवार्य बड़े पैमाने के कार्यक्रम" को कवर करने के लिए एक आवरण भर लग रहा है। जिसे तिब्बतियों को सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई रूप से बहुसंख्यक हान संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर करने के इरादे से स्थापित किया गया था।
रिपोर्ट के निष्कर्ष
- शैक्षिक सामग्री और वातावरण बहुसंख्यक हान संस्कृति पर आधारित है
- पाठ्यपुस्तक की सामग्री पूरी तरह से हान छात्रों के जीवंत अनुभव को दर्शाती है,
- तिब्बती बच्चों को मंदारिन में 'अनिवार्य शिक्षा' पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है,
- पारंपरिक या सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक शिक्षा तक कोई पहुंच नहीं दी गयी है
- सरकार द्वारा संचालित पुतोंगहुआ भाषा स्कूल तिब्बती भाषा, इतिहास और संस्कृति का ठोस अध्ययन नहीं देते है
- तिब्बत में और बाहर ऐसे स्कूलों और छात्रों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है
- पूर्व में उदार, समावेशी नीतियों में बदलाव
इसके अलावा, रिपोर्ट में पाया गया कि तिब्बती आबादी वाले क्षेत्रों में कई ग्रामीण स्कूलों को बंद कर दिया गया और उनकी जगह ऐसे स्कूलों को खोला गया जो पुतोंगहुआ में लगभग विशेष रूप से काम करते है।
UN 🇺🇳 experts make a strong statement on Tibet 👇🏽
— Uyghur Human Rights Project (@UyghurProject) February 6, 2023
"We are very disturbed that [...] the residential school system for Tibetan children appears to act as a mandatory large-scale programme intended to assimilate Tibetans into majority Han culture."https://t.co/ibhFU0Da7h
इस कदम का मकसद
विशेषज्ञों की राय है कि इससे तिब्बती बच्चे अपनी मूल भाषा और तिब्बती भाषा में अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ आसानी से संवाद करने की क्षमता खो रहे हैं, जो आगे उनकी आत्मसात करने और उनकी पहचान के क्षरण में योगदान देता है।
इस कदम को "भेदभाव और शिक्षा के अधिकारों, भाषाई और सांस्कृतिक अधिकारों, धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता, और तिब्बती लोगों के अन्य अल्पसंख्यक अधिकारों के निषेध" के विपरीत माना जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि "इस आह्वान ने एकल चीनी राष्ट्रीय पहचान के आधार पर एक आधुनिक और मजबूत समाजवादी राज्य के निर्माण के विचार की फिर से पुष्टि की। इस संदर्भ में, तिब्बती भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की पहल कथित तौर पर दबा दी जा रही है, और तिब्बती भाषा और शिक्षा की वकालत करने वाले व्यक्तियों को सताया जा रहा है।"
#China has forced nearly 1 MILLION #Tibetan schoolchildren into state-run boarding schools, where they're CUT OFF from their language, religion, culture and families--and now UN experts are raising the alarm
— International Campaign for Tibet (@SaveTibetOrg) February 6, 2023
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चीन में संस्कृतियों को मिटाने का इतिहास
अगस्त 2021 में, जातीय मामलों पर केंद्रीय सम्मेलन ने चीन में सभी अल्पसंख्यक जातीय समूहों से चीनी राष्ट्र के हितों को हमेशा प्राथमिकता देने का आह्वान किया।
इसके लिए, तिब्बती भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की पहल को दबा दिया गया है, "तिब्बती भाषा और शिक्षा की वकालत करने वाले लोगों" को सताया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी हालिया रिपोर्ट में उल्लेख किया कि मांग "एक चीनी राष्ट्रीय पहचान के आधार पर एक आधुनिक और मजबूत समाजवादी राज्य के निर्माण के विचार की पुष्टि करता है।"
नवंबर में, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने इस मुद्दे के संबंध में बीजिंग के अधिकारियों को लिखा और आगे के विकास के लिए संपर्क में रहे।