मंगलवार को, जापान सरकार ने फुकुशिमा दाईची परमाणु ऊर्जा संयंत्र में संग्रहीत लाखों टन रेडियोधर्मी अपशिष्ट पानी को प्रशांत महासागर में छोड़ने के लिए आधिकारिक तौर पर आदेश पारित कर दिया है। इसके अलावा, सरकार प्रतिष्ठित स्थानीय मत्स्य पालन और भोजन की गुणवत्ता की क्षति क्षति से जुड़ी बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिए कई तरह के कदमों की भी घोषणा की।
प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने मंगलवार को कहा कि "फुकुशिमा संख्या 1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र के डीकमीशनिंग की प्रक्रिया में ट्रीटेड वॉटर डिस्चार्ज एक अनिवार्य प्रक्रिया है.. आज, हमने यह निर्णय लिया है कि समुद्र में पानी को छोड़ना ज़रूरी है और इसके दौरान बुनियादी नीतियों का ख़याल रखना भी आवश्यक है।" ऐसी स्थिति में सरकार सुरक्षा की गारंटी देती है जो महत्वपूर्ण (राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय) मानकों के अनुकूल है और अफवाहों से होने वाले नुकसान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई को लागू करने के लिए वह कार्यवाही कर सकती है, “। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पानी का परिष्करण अंतरराष्ट्रीय नियामक मानकों के अनुसार किया जाएगा।
लगभग 1 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी - जो कि 400 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूलों को भरने के लिए पर्याप्त है - 2011 के भूकंप और सुनामी में क्षतिग्रस्त होने के बाद से संयंत्र में जमा हुआ है। हालाँकि पानी को परिष्कृत किया गया है और साइट पर ही संग्रहीत किया जा रहा है, फिर भी यह रेडियोधर्मी है। मंगलवार का फैसला सरकार द्वारा मूल्यांकन किए जाने के पांच साल बाद आया है, जिसमें पानी को वायुमंडल में वाष्पित करने सहित पांच विकल्पों में से समुद्र में निर्वहन पानी के निपटान का सबसे सस्ता और तेज तरीका होगा। जापानी सरकार पर इस मामले में अंतिम निर्णय लेने का दबाव है, क्योंकि प्लांट के संचालक, टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी (TEPCO) ने कहा है कि 1.37 मिलियन टन की जल भंडारण क्षमता 2022 के मध्य तक पूरी हो जाएगी। TEPCO एक सुविधा का निर्माण करने और उचित सुरक्षा आवश्यकताओं का पालन करने वाली रिलीज़ योजनाओं की स्थापना के बाद लगभग दो वर्षों में उपचारित पानी को छोड़ना शुरू कर देगा। समुद्र के पानी का उपयोग करके पानी को 100 से अधिक गुना पतला किया जाएगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि इसमें 1,500 से अधिक ट्रिटियम की मात्रा न हो। यह राष्ट्रीय मानक का एक चौथाई है।
हालांकि, चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया और कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक अधिकार समूहों सहित पड़ोसी देशों ने इस योजना के लिए चिंता और विरोध व्यक्त किया है। चीनी मीडिया हाउस ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, ये चिंताएं "जापानी सरकार के परमाणु मुद्दे और अप्रत्याशित पारिस्थितिक जोखिमों को संभालने में कम विश्वसनीयता" से उपजी हैं। पिछले साल, जब जापान ने पहली बार प्रशांत क्षेत्र में पानी के निपटान की अपनी योजना का संकेत दिया, स्थानीय मछुआरों और निवासियों ने भी इस कदम का विरोध यह तर्क देते हुए किया था कि इस तरह के उपाय से घरेलू और विदेशी उपभोक्ताओं के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण करने के उनके लगभग एक दशक पुराने संघर्ष को हानि पहुंचेगी। फुकुशिमा तट के किनारे मछली पकड़ने की गतिविधियों को आपदा के तुरंत बाद रोक दिया गया था, और जून 2012 में मछली पकड़ने के क्षेत्र, पकड़ने के प्रकार और मछली पकड़ने की तारीखों पर कड़े प्रतिबंधों के साथ परीक्षण अभियान शुरू हुआ।
दक्षिण कोरिया के साथ जापान के द्विपक्षीय संबंधों में, इस कदम से और खिंचाव आ सकता है, जो पहले से ही युद्ध श्रम और व्यापार के मुद्दों पर बढ़े हुए टकराव को देख चुके हैं। सीओल ने इससे पहले भी इस मुद्दे पर टोक्यो से बातचीत कर यह अनुरोध किया था कि वह इस मामले में पारदर्शिता बनाये और संतुलित कदम उठाये जिससे की पर्यावरण और सार्वजनिक स्वस्थ्य को हानि न पहुँचे। इसी संबंध में, दक्षिण कोरिया के उप-विदेश मंत्री, चोई जोंग-मून ने मंगलवार को जापानी राजदूत कोइची एबोशी के साथ मुलाकात की और यह चिंता व्यक्त की कि यह निर्णय हमारे लोगों और आसपास के पर्यावरण की सुरक्षा पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव ला सकता है।"