20 मई को भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों से महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत म्यूकोर्मिकोसिस, जिसे काली फफूंद यानी ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है, के प्रसार को एक महामारी घोषित करने का आह्वान किया। देश के स्वास्थ्य सचिव, लव अग्रवाल ने एक में इसकी सूचना भारत के 29 राज्यों को लिखे गए पत्र में दी। अधिनियम की शर्तों के अनुसार, राज्यों को ब्लैक फंगस संक्रमण के सभी संदिग्ध और पुष्ट मामलों की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को देनी होगी। यह भारत सरकार को इस बीमारी के प्रसार में अधिक प्रभावी रूप से शामिल होने और अधिक एकीकृत उपचार योजना बनाने की क्षमता प्रदान करेगा।
ब्लैक फंगस म्यूकर मोल्ड के संपर्क में आने के कारण होता है, जो आमतौर पर मिट्टी या पौधों में पाया जाता है। यह सीधे साइनस, मस्तिष्क और फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह विशेष रूप से उन रोगियों को प्रभावित करता है जिन्हें मधुमेह है या जो इम्यूनोसप्रेसेन्ट का सेवन कर रहे हैं। लक्षणों में नाक बंद होना, नाक से काला या खूनी स्राव या नाक का रंग खराब होना शामिल हैं। इसके लक्षणों में धुंधली दृष्टि, सांस की तकलीफ, सीने में दर्द, बुखार, सिरदर्द और खांसी भी शामिल है।
हालाँकि इसका संक्रमण पहले अपेक्षाकृत दुर्लभ था, पिछले कुछ महीनों में, भारत में कोरोनावायरस से ठीक होने वाले रोगियों के बीच ब्लैक फंगस के हज़ारों मामले सामने आए हैं। इसे प्रारंभिक अवस्था में नहीं पकडे जाने की स्थिति में इससे होने वाली मृत्यु की दर लगभग 50% है। डॉक्टरों ने कहा है कि कई मौकों पर इस बीमारी का इलाज करने और इसे दिमाग में फैलने से रोकने का एक ही तरीका है कि मरीजों की आंखें और जबड़ों को हटा दिया जाए।
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए स्टेरॉयड के उपयोग के कारण इन मामलों की बढ़ती संख्या की संभावना है। भारत में स्टेरॉयड का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा और कुछ विशेषज्ञ दवाओं के अति प्रयोग की आलोचना कर रहे हैं।
हालाँकि, संक्रमणों में वृद्धि का एक अन्य कारण कोविड-19 रोगियों को ऑक्सीजन का अस्वच्छ प्रशासन है। औद्योगिक ऑक्सीजन की तुलना में मेडिकल ऑक्सीजन को बार-बार संपीड़न, निस्पंदन और शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऑक्सीजन अत्यधिक शुद्ध हो। इसके अलावा, मेडिकल ऑक्सीजन के भंडारण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सिलेंडर अत्यधिक रोगाणुहीन और कीटाणुरहित होने चाहिए। इसके अलावा, ऑक्सीजन को केवल विसंक्रमित पानी से पारित किया जाना चाहिए। इन दिशानिर्देशों का पालन करने में विफ़लता से लोग संक्रमित हो सकते हैं।
रोगियों और चिकित्सा पेशेवरों के संकट को बढ़ाते हुए, एम्फोटेरिसिन बी की भारी कमी हो गई है, जो संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा है। इस बीमारी के लिए प्रत्येक रोगी को 60 शीशियों की आवश्यकता होती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि दवा को काले बाज़ार में बड़े पैमाने पर बेचा जा रहा है, जिससे मरीज़ों को दवा के लिए अत्यधिक कीमत चुकानी पड़ रही है।
कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा और बिहार सहित देश भर के कई राज्यों में अब तक संक्रमण की सूचना मिली है। महाराष्ट्र में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे के अनुसार, ब्लैक फंगस के 1,500 से अधिक सक्रिय मामले मिले है जिसकी वजह से 90 से अधिक मौतें हुई है। हालाँकि, देश भर में मामलों की सही संख्या अब तक स्पष्ट नहीं है।
लव अग्रवाल के पत्र के बाद तमिलनाडु, गुजरात और ओडिशा समेत कई राज्यों ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया है। तेलंगाना और राजस्थान ने इस सप्ताह की शुरुआत में इसकी घोषणा की थी।
देश कोविड-19 महामारी और ब्लैक फंगस द्वारा उत्पन्न दोहरी चुनौती से लड़ रहा है और अब बिहार में भी सफेद फफूँदी के मामले भी सामने आए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि फेद फफूँदी ब्लैक फंगस से भी अधिक खतरनाक है और यह नाखून, त्वचा, पेट, गुर्दे, मस्तिष्क, निजी अंग और मुंह सहित शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। यदि कोविड-19 रोगियों को ऑक्सीजन देते समय प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करके फेद फफूँदी के प्रसार पर जल्द से जल्द अंकुश नहीं लगाया गया, तो यह देश में चिकित्सा आपातकाल को रोकने के भारतीय अधिकारियों के प्रयास के लिए एक और झटका हो सकता है और स्वास्थ्य प्रणाली को तोड़ सकता है।