नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोमवार को संसद के 275 सदस्यीय निचले सदन में विश्वास मत खो दिया, जिसमें उन्हें आवश्यक 136 में से केवल 93 मत प्राप्त हुए। 124 सदस्यों ने उनके ख़िलाफ़ मतदान किया जबकि 15 शेष तटस्थ रहें। राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा संसद के विशेष सत्र के दौरान यह मतदान किया गया और इसमें 232 सांसदों ने भाग लिया था।
मतदान के बाद, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष (नेकां), शेर बहादुर देउबा, सीपीएन-एम के अध्यक्ष, पुष्पकमल दहल प्रचंड, और जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र यादव ने संयुक्त रूप से एक बयान के ज़रिए राष्ट्रपति भंडारी को सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू करने हेतु आग्रह किया। जवाब में, भंडारी ने तीन दिन की समय सीमा निर्धारित की, जिसमें उन्होंने गुरुवार रात 9 बजे तक नेताओं को बहुमत वाली सरकार बनाने और ओली के स्थान पर अपना उम्मीदवार चयन करने का समय दिया है।
नेपाल के संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री ओली को अब तुरंत अपने पद से मुक्त कर दिया जाएगा और एक नई गठबंधन सरकार बनेगी जिसे दो या दो से अधिक पार्टियों के समर्थन से बनाया जाएगा, जो निचले सदन का प्रतिनिधित्व करेगी। नेकां, जो मुख्य विपक्षी दल है और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल-माओवादी (सीपीएन-एम), जिसका पहले ओली के सीपीएन-यूनिफ़ाइड मार्क्सवादी-लेनिनवादी के साथ गठबंधन था, इस संबंध में महत्त्वपूर्ण कदम उठा सकती है।
नेपाल महीनों से राजनीतिक संकट के कगार पर है। केपी शर्मा ओली की अगुवाई वाली सरकार से सीपीएन-एम द्वारा आधिकारिक तौर पर अपना समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद बुधवार को प्रतिनिधिमंडल में बहुमत हारने पर देश की राजनीतिक स्थिति को नया झटका लगा है। यह कदम दिसंबर 2020 में राष्ट्रपति भंडारी द्वारा संसद को भंग करने और 30 अप्रैल और 10 मई, 2021 को नए चुनावों की घोषणा और उसके बाद महीनों की विफ़ल वार्ता के बाद आया है। संसद का विघटन कथित तौर पर ओली की सिफ़ारिश पर किया गया था और इसको प्रचंड समेत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा जिन्होनें इस कदम को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया। फरवरी में, हालाँकि नेपाल की उच्चतम न्यायालय ने सरकार के कदम को ख़ारिज करने के साथ साथ भंग संसद को बहाल कर दिया और नेतृत्व को 13 दिनों के भीतर सदन को बुलाने का आदेश दिया था।
यह घटना देश के पूर्व प्रधानमंत्री ओली और एनसीपी गठबंधन में उनके प्रतिद्वंद्वी प्रचंड के बीच पार्टी के भीतर चल रहे झगड़े के कारण हुई है। ओली को 2017 में पाँच साल के कार्यकाल के लिए चुना गया था। 2018 में एनसीपी के गठन के दौरान, दोनों नेताओं ने एक शक्ति-साझाकरण समझौते पर बातचीत की थी, जिसमें ओली और प्रचंड दोनों ढाई-ढाई साल के लिए प्रधानमंत्री पद संभालेंगे। हालाँकि, 2019 में दोनों सहमत हुए कि ओली पूरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे और कार्यकारी अध्यक्ष का पद प्रचंड को दिया जाएगा। प्रचंड के अनुसार, चूंकि 2019 के समझौते की भावना का प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान नहीं किया जा रहा था, उन्हें 2018 की व्यवस्था का पालन करना चाहिए था। इसके बाद ओली ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपने पद से हटने की अनिच्छा को दोहराया। इससे एनसीपी में दो गुट बन गए, जिसमें एक समूह वर्तमान प्रधानमंत्री ओली का समर्थन कर रहा था और दूसरा समूह पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड का समर्थन कर रहा था, जिसके परिणामस्वरूप इस सप्ताह की राजनीतिक उहापोह की स्थिति बनी।