शुक्रवार को, नॉर्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो देश में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले नियमों का विवरण देता है। यह सौदा नार्वे के प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार द्वारा किया गया है और अब देश की संसद से अनुमोदन की प्रतीक्षा कर रहा है।
नॉर्वे सरकार के एक बयान के अनुसार, इस सौदे से अमेरिकी अधिकारियों को देश में तीन एयरफील्ड और एक नौसैनिक अड्डे पर सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की अनुमति मिलेगी। यह अमेरिकी सैन्य बलों को फाइटर जेट्स के लिए राईज एयर बेस, इन-फ्लाइट रीफ्यूलिंग के लिए सोला बेस, समुद्री निगरानी के लिए एवेनेस बेस और रैमसंड में नौसेना लॉजिस्टिक्स बेस का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, बयान में स्पष्ट किया गया है कि इससे देश में अलग अमेरिकी ठिकानों के तौर पर नहीं मन जायेगा, जो नॉर्वे में विदेशी ठिकानों पर प्रतिबंध के अनुसार है।
समझौते के बारे में ख़ुशी जताते हुए सरकार ने कहा, "समझौता नॉर्वे में अमेरिकी उपस्थिति, प्रशिक्षण और अभ्यास को नियंत्रित करता है और इस प्रकार संकट या युद्ध की स्थिति में अमेरिका को नॉर्वे तक शीघ्र सहायता पहुँचाने की सुविधा देता है।" इसके अलावा, नॉर्वे के विदेश मंत्री इने एरिकसेन सोराइड ने कहा, “हमारे सहयोगियों के साथ हमारा सम्बन्ध निरंतर विकासाधीन है। यह समझौता अमेरिका के साथ नॉर्वे के घनिष्ठ संबंध की के साथ-साथ नाटो के उत्तरी तट पर नॉर्वे की महत्वपूर्ण स्थिति की पुष्टि करता है।
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी नॉर्वेजियन नेताओं के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह समझौता देश की आम सुरक्षा चुनौतियों को पूरा करने और साझा हितों और मूल्यों की रक्षा करने के लिए अमेरिका के गठजोड़ों की पुन: पुष्टि और पुनर्निमाण करने की देश की प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है। ब्लिंकन ने कहा की इससे दोनों पक्षों के बीच "बेहतर अंतर-कार्य प्रणाली" में सुधार होगा और उन्हें पारस्परिक महत्व के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर बारीकी से काम करने के अवसर मिलेंगे।
यह समझौता नार्वेजियन तट के साथ रूसी सैन्य गतिविधियों का मुकाबला करने का एक प्रयास है, जो नाटो सहयोगियों के लिए चिंता का कारण है। रूस ने नॉर्वेजियन सागर के साथ न केवल अपनी उत्तरी बेड़े पनडुब्बियों को तैनात किया है, बल्कि क्रूज मिसाइलों के साथ पनडुब्बियों को भी विकसित किया है, जिन्होंने उसकी स्ट्राइक करने की क्षमताओं को बढ़ाया है। इसके अलावा, 7 अप्रैल को, नए उपग्रह चित्रों ने रूस को आर्कटिक समुद्र तट पर अपनी सैन्य उपस्थिति को क्षेत्र में सैन्य ठिकानों के निर्माण और हार्डवेयर स्थापित करत्ते हुए दिखाया है। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, मॉस्को पोसाइडन 2 एम 39 टारपीडो की तरह "सुपर-हथियार" का परीक्षण करने के लिए नए बर्फ मुक्त क्षेत्र का उपयोग कर रहा है, और आगे अपने उत्तरी तट को सुरक्षित करने और एशिया से यूरोप के लिए शिपिंग मार्ग खोलने के लिए अपने सैन्य बल का उपयोग कर सकता है।"
इसके बावजूद, क्रेमलिन लंबे समय से यह कह रहा है कि रूस का किसी भी देश को आर्कटिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों के माध्यम से धमकी देने का कोई इरादा नहीं है। इस महीने की शुरुआत में, देश के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने इस रुख को दोहराया, जिसमें उन्होंने कहा कि आर्कटिक में शांति को केवल अमेरिकी सैन्य गतिविधियों से खतरा है। उन्होंने कहा की गैर-आर्कटिक राष्ट्रों सहित नाटो और उसके सदस्य देश, आर्कटिक क्षेत्र में लगातार भड़काऊ गतिविधियों में संलग्न रहते है और यह नियमित आधार पर होता है"।
आशंका यह है की नॉर्वे और अमेरिका के बीच 70 साल के लंबे रक्षा सहयोग को मजबूत करने वाले इस सौदे से रूस के विचलित होने की संभावना है। रूस ने हमेशा नॉर्वे के साथ एक अनूठा रिश्ता बनाए रखा है। नॉर्वे नाटो का एकमात्र सदस्य है जो रूस के साथ सीमा साझा करता है। इसलिए, सीमा पार आंदोलन और व्यापार संबंधों के कारण दोनों के बीच क्षेत्रीय सहयोग अपरिहार्य और आवश्यक है। उदाहरण के लिए, रूस नॉर्वे के समुद्री खाद्य उद्योग के सबसे महत्वपूर्ण व्यापार भागीदारों में से एक है। हालांकि, 2012 में व्लादिमीर पुतिन के फिर से चुने जाने से उनकी सीमा के साथ नॉर्वेजियन-रूसी सहयोग में गिरावट आई, जिसके कारण इस क्षेत्र में गैर-सरकारी संगठनों और नागरिक अधिकारों पर पुतिन ने रोक लगा दी थी। 2014 में क्रीमिया को एनेक्स करने के पुतिन की अगुवाई वाली सरकार के फैसले से ये तनाव बढ़ गए थे। तब से, नाटो की रूसी विरोधी भावनाएं बढ़ गयी है। 2018 में, नॉर्वे ने एक नाटो सैन्य अभ्यास किया और किर्केन्स क्षेत्र के 31 देशों के 50,000 से अधिक प्रतिभागियों की मेजबानी की, जो शीत युद्ध के बाद इस तरह की सबसे बड़ी ड्रिल है। इसके अलावा, दोनों पक्षों ने सीमा पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है और लगातार सैन्य युद्धाभ्यास में लगे हुए हैं।