पिछले साल 15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी ने भारत और चीन की सेनाओं के बीच 45 वर्षों में सबसे खराब झड़पों में से एक हिंसक झड़प देखी गयी। इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए और इसने भारत और चीन को लगभग युद्ध स्थिति में ला दिया। इस झड़प के परिणामस्वरूप सैन्य गतिरोध और विघटन प्रक्रिया के लिए दोनों देशों के बीच कम से कम 11 दौर की सैन्य वार्ताए हुई।
15 जून को क्या हुआ था
इस घटना के कई हफ़्ते पहले से ही एलएसी में तनाव में वृद्धि महसूस की गयी थी जिसके चलते दोनों देशों ने सीमा पर अपनी सेना की तैनाती बढ़ा दी थी। इसके बाद भारत ने चीन पर आरोप लगाया की वह भारत के इलाके में घुस आया है। इसके बाद 6 जून को हुई दोनों देशो की एक स्थानीय सैन्य कमांडरों की वार्ता में पारस्परिक रूप से पीछे हटने की प्रक्रिया पर सहमति बनी।
इसके बाद के घटनाक्रम में दोनों सेनाओं के बीच एक बफर जोन बनाया जाना था। हालाँकि यह होने से पहले एक भारतीय कमांडर का ध्यान भारत के क्षेत्र में एक चीनी शिविर पर गया। वह इसका निरीक्षण करने गए जिसके बाद दोनों पक्षों के विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। रक्षा मंत्रालय द्वारा वार्षिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन ने गालवान में अपरंपरागत हथियारों का इस्तेमाल किया था।
इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हुए जबकि चीन ने इस बात की पुष्टि की कि पीएलए को किसी तरह का मानवीय नुकसान नहीं उठाना पड़ा था। हालाँकि,फरवरी 2021 में, चीन ने पहली बार स्वीकार किया कि गलवान घाटी संघर्ष में पांच चीनी सैन्य अधिकारी और सैनिकों की मौत हुई थी।
बैठकों का दौर
इस हिंसक झड़प के बाद पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 पर दोनों सेनाओं के मेजर जनरलों के स्तर पर एक बैठक हुई थी। इसके बाद ऐसा समझा जा रहा था की स्थिति नियंत्रण में आ गयी है। चीन की सेना द्वारा कैद में लिए गए दस भारतीय सेना के जवानों को 17 जून को राजनयिक और सैन्य स्तर पर बातचीत के बाद वापस कर दिया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 जून को राष्ट्र को संबोधित करते हुए इस मामले पर कहा कि "भारत शांति चाहता है। लेकिन उकसाने पर भारत करारा जवाब देगा।"
16 जून को हुई एक बैठक में भारतीय और चीनी सेनाओं के कोर कमांडरों के बीच पारस्परिक सहमति बनी। हालाँकि किसी योजना की कमी के कारण यह बैठक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से कोसों दूर रही।
भारत ने यथास्थिति की बहाली की मांग की और मई में हुई झड़प से पहले की स्थिति में सैनिकों की वापसी का आग्रह किया। जबकि, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने झड़प के पांच दिन बाद ट्वीट्स की एक श्रृंखला में दावा किया कि "गलवान घाटी चीन-भारत सीमा के पश्चिमी खंड में वास्तविक नियंत्रण रेखा के चीनी पक्ष में स्थित है। कई वर्षों से, चीनी सीमा सैनिक इस क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं और ड्यूटी पर हैं।”
सितम्बर में चुशुल सेक्टर में चीनी चालों को विफल करने वाले भारतीय सैनिकों ने रेजांग ला के पास पैंगोंग त्सो और रेचिन ला के दक्षिणी तट पर कब्ज़ा कर लिया। स्थिति बेहतर होने के विपरीत चीनी पीएलए ने भारतीय सेना पर आरोप लगाया कि भारतीय सैनिकों ने चेतावनी के गोले दागे थे, जिसकी वजह से उसे ज़मीन पर स्थिति को स्थिर करने के लिए जवाबी कदम उठाना पड़ा।
शांति वार्ता
नौ महीने के सैन्य गतिरोध को हल करने के लिए बातचीत में पहली बड़ी सफलता फरवरी 2021 में मिली थी। चीन के रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की कि पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी तटों पर चीनी और भारतीय सैनिकों ने नियमवार तरीके से पीछे हटना शुरू किया। यह समझौता 24 जनवरी को नौवें दौर की सैन्य वार्ता में कोर कमांडरों के बीच बनी आम सहमति के बाद तय हुआ था।
चीनी राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल वू कियान ने एक लिखित बयान में कहा: "पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी और उत्तरी तट पर चीनी और भारतीय सैनिक 10 फरवरी से पीछे हटेंगे।"
पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों में दोनों सेनाओं के पीछे हटने के बाद सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने 19 मई को कहा कि "इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का उल्लंघन नहीं देखा गया है। अतएव मुझे लगता है कि दोनों पक्षों के बीच विश्वास बढ़ा है।"
संघर्ष के एक साल बाद
बीबीसी की एक खबर के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में, चीनी अधिकारियों ने किउ ज़िमिंग को, कम से कम आधा दर्जन लोगों में से एक, जिन्हें गलवान पर टिप्पणी करने के लिए हिरासत में ले लिया गया था, को शहीदों को बदनाम करने के लिए आठ महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई। किउ ने इस बात पर सवाल उठाया था कि जब भारत ने गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की मौत पर साफ़ बयान दिया लेकिन चीन अभी तक हताहतों की संख्या का पूरी तरह से खुलासा क्यों नहीं किया है।
चीनी सरकार के 19 जून 2020 के बयान में कहा गया है, "अप्रैल से भारतीय सीमा सैनिकों ने गलवान घाटी में एलएसी पर एकतरफा और लगातार सड़कों, पुलों और अन्य सुविधाओं का निर्माण किया है।" इसने 6 मई की सुबह को अधिक गंभीर तनाव की शुरुआत के रूप में संदर्भित किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि भारतीय सैनिकों ने "रात में एलएसी पार कर लिया था"।
भारतीय अधिकारियों ने ने इस बयान का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय सैनिकों को अप्रैल के बाद से पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 तक पहुंचने से रोका गया था, जो कि वे हर गर्मियों में जाते हैं, और सुविधाओं का निर्माण भारत के पीपी 14 की तरफ हुआ था। बाद में जारी सैटेलाइट तस्वीर से पता चलता है कि 15 जून की झड़प पीपी14 के पास हुई थी। अधिकांश भारतीय गश्त बिंदु भारत की ओर एलएसी से कम हैं।
जबकि भारत और चीन के बीच देपसांग, डेमचोक, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्रों में अभी भी अनसुलझे तनाव है। चीन ने इस मामले पर किसी भी तरह की कवरेज करने में बाधा बनाए रखी है। साथ ही यह तथ्य कि यह भारत धीमी गति से चल रही वार्ताओं में यथास्थिति की वापसी की मांग कर रहा है, जबकि चीन की ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं देखा गया है।
चीन और भारत की वैश्विक मंच पर महत्त्वपूर्ण स्थिति को देखते हुए दोनों देशों को पूर्वी लद्दाख में सैन्य वृद्धि को समान गंभीरता से लेना चाहिए। हालाँकि पूर्वी लद्दाख में वर्तमान छद्म शांति केबावजूद, दोनों पक्ष एक नए सामान्य के रूप में सशस्त्र सह-अस्तित्व को स्वीकार कर सकते है। विश्वास बनाने के लिए खुले संवाद के माध्यम से चीन और भारत को एक-दूसरे की क्षेत्रीय पहलों की बेहतर समझ बनाना महत्वपूर्ण है।