मंगलवार को, श्रीलंकाई अधिकारियों को हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन के एक पोत पर परमाणु सामग्री मिली। अधिकारियों के अनुसार, पोत को निष्कासित कर दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यह खतरनाक कार्गो के लिए पहले से अनुमति लेना श्रीलंकाई परमाणु ऊर्जा अधिनियम द्वारा अनिवार्य किया गया है। इस खबर की पुष्टि श्रीलंकाई नौसेना के प्रवक्ता, कप्तान इंडिका डी सिल्वा ने की। हालाँकि, श्रीलंका सरकार की ओर से कोई भी आधिकारिक टिप्पणी नहीं की गई है।
यह पोत एंटीगुआ और बारबुडा में पंजीकृत था और रॉटरडैम, नीदरलैंड्स से चीन की ओर जा रहा था। हालाँकि, मैकेनिकल इमरजेंसी का हवाला देते हुए, जहाज़ ने चीन द्वारा संचालित हंबनटोटा पोर्ट पर डॉक करने की अनुमति मांगी, लेकिन अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं दी गयी थी कि जहाज पर कार्गो में यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड था, जो एक रेडियोधर्मी सामग्री है और जिसे श्रीलंका के कानून के तहत "खतरनाक कार्गो" माना जाता है। यह मुख्य रूप से है क्योंकि इसका उपयोग यूरेनियम को समृद्ध करने के लिए किया जा सकता है, जिसका उपयोग परमाणु संयंत्र को ऊर्जा देने और परमाणु हथियार बनाने के लिए किया जाता है। श्रीलंका परमाणु ऊर्जा नियामक परिषद के महानिदेशक के अनुसार, जब भी यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड को एक देश से दूसरे देश में ले जाया जाता है, श्रीलंका के बंदरगाहों पर ऐसे जहाज़ों को जगह के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय रक्षा मंत्रालय के परामर्श के बाद लिया गया था।
बुधवार को, विपक्ष के नेता सजीथ प्रेमदासा ने इस मामले को देश की संसद के समक्ष रखा। उन्होंने निकाय को सूचित किया कि नौसेना के अधिकारियों को पोत का निरीक्षण करने के लिए जहाज़ पर चढ़ने की अनुमति नहीं दी गई थी। चीन की ओर से बढ़ते दबाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस मुद्दे को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए "राजनयिक मिशन" द्वारा श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। हालाँकि, उन्होंने सरकार से इस मुद्दे की जाँच करने का अनुरोध किया क्योंकि यह देश के नागरिकों के जीवन को संभावित रूप से प्रभावित कर सकता है।
हंबनटोटा बंदरगाह कई पश्चिमी विशेषज्ञों की आलोचना का विषय रहा है, जिन्होंने बंदरगाह में चीन की भागीदारी को उसके ऋण जाल में फंसाने वाली राजनीति का हिस्सा बताया है। 2017 में, श्रीलंका के अधिकारियों ने बंदरगाह बनाने के लिए चीन से मिले 1.4 मिलियन डॉलर का ऋण चुकाने में असमर्थतता के कारण बीजिंग के साथ 99 साल के पट्टे पर हस्ताक्षर किए। इसने कई पश्चिमी देशों को चिंता में दाल दिया था क्योंकि यह बंदरगाह सामरिक रूप से हिन्द महासागर के नौवहन मार्गों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसके अलावा, भारतीय तटरेखा की भौगोलिक निकटता के कारण, नई दिल्ली ने वहां चीनी उपस्थिति के बारे में भी चिंता जताई है। हालाँकि, कोलंबो कि बंदरगाह का उपयोग केवल वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा न कि सैन्य उपयोग के लिए।
इन आलोचनाओं के अलावा, बंदरगाह श्रीलंका में कई घरेलू इकाइयों के लिए भी चिंता का विषय रहा है। पिछले हफ़्ते ही, कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल को चुनौती देने के लिए सिविल सोसाइटी समूहों और श्रमिक संघों द्वारा देश के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गईं थी। इसके अंतर्गत यह विधेयक एक विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण कर सकेगा और हंबनटाउन बंदरगाह सहित कोलंबो में कई बंदरगाहों को पंजीकरण, लाइसेंस, प्राधिकरण और अन्य अनुमोदन के लिए एक आयोग बनाकर कई श्रीलंकाई कानूनों का पालन करने से प्रभावी ढंग से छूट देगा। । हालाँकि, श्रीलंका सरकार ने अपना इस बारे में अपना रुख साफ़ किया है कि इस क्षेत्र में श्रीलंकाई संप्रभुता पर विधेयक का कोई असर नहीं पड़ेगा। इसलिए, चीन-बद्ध जहाज़ को निष्कासित करने का निर्णय श्रीलंका के अधिकारियों द्वारा कोलंबो बंदरगाह शहर पर अपने नियंत्रण की पुष्टि करने और चीनी प्रभुत्व के बारे में अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू आलोचनाओं को ख़ारिज करने का एक प्रयास है।