मंगलवार को, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने अपना 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट जारी की जिसमे लोगों तक खबरों की पहुँच में भरी गिरावट और पत्रकारों के समक्ष बढ़ती बाधाओं के बारे में कहा गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पत्रकारिता, जिसे आरएसएफ दुष्प्रचार के वायरस के खिलाफ सबसे अच्छे टीके के रूप में देखता है। 180 देशों ने अध्ययन के बाद यह पता चला कि 73 देशों में पूरी तरह से अवरुद्ध या गंभीर रूप से बाधित है और 59 देशों में सीमित है, जो संचयी रूप से 73% है। किया।
आरएसएफ का तर्क है कि पत्रकारों की जानकारी तक पहुँच और क्षेत्र रिपोर्टिंग करने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करने के लिए चल रहे कोरोनावायरस महामारी का इस्तेमाल किया गया है। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया कि कई विश्व नेताओं-जिनमें वेनेजुएला (# 148) निकोलस मादुरो, ब्राजील के (# 111) जेयर बोल्सोनारो, संयुक्त राज्य अमेरिका (# 44) डोनाल्ड ट्रम्प, किर्गिस्तान के (# 79), सदिर जापरोव, तंजानिया के (# 124) ) जॉन मैगुफुली, और मेडागास्कर (# 57) एंड्री राजोइलिना ने COVID-19 के लिए असुरक्षित और अक्सर खतरनाक उपचारों का दोहन करके पत्रकारों की भूमिका को दबाने का प्रयास किया है। अन्य नेता जैसे मिस्र के (# 166) अब्देल फत्ताह अल-सिसी ने महामारी पर आंकड़ों को प्रकाशित करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
कुल मिलाकर, रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि 11.88% देशों में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति बहुत गंभीर है, 28.71% देशों में मुश्किल है, 32.67% देशों में समस्याग्रस्त है, 19.80% देशों में बेहतर और सिर्फ़ 6.93% में स्थिति अच्छी है।
एशिया प्रशांत
इस क्षेत्र में सत्तावादी शासन द्वारा जानकारी के पूर्ण नियंत्रण के तरीकों के अलावा आरएसएफ ने तानाशाही लोकतंत्र में दमनकारी कानून और असंतोष के प्रति असहिष्णुता की निरंतर प्रवृत्ति संबंध में भी चिंता व्यक्त की है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में (# 142), सरकार-समर्थक मीडिया का उपयोग अक्सर सरकार के पक्ष में प्रचार प्रसार करने और यहां तक कि सरकार के आलोचकों के खिलाफ घृणा फ़ैलाने के लिए किया जाता है, जिसमें सरकार के खिलाफ बोलने वाले पत्रकारों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थकों द्वारा अक्सर राष्ट्र-विरोधी या आतंकवाद समर्थक घोषित किया जाता है। इन अभियानों का असर वह देखने को मिलता है जहां पत्रकारों को परेशान किया जाता है और यहां तक कि भाजपा समर्थकों द्वारा अक्सर पुलिस की मदद से शारीरिक हमला भी किया जाता है। इनमें से कई आलोचकों को देशद्रोह और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालने जैसे आरोपों पर मनमानी गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता ह
पाकिस्तान में (# 145), सेना की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) देश की सीमाओं के भीतर और बाहर दोनों देशों में सैन्य और सरकार के आलोचकों को शांत करने के लिए न्यायिक उत्पीड़न, धमकी, अपहरण, और यातना जैसे उपायों का प्रयोग करती है। ।
प्रेस फ्रीडम में भी इसी तरह की गिरावट बांग्लादेश (# 152), श्रीलंका (# 127) और नेपाल # 106) में भी बताई गई है। इस बीच, अफ़ग़ानिस्तान (# 122) पत्रकारों के लिए दुनिया का सबसे घातक देश बना हुआ है, जिसमें 2020 में छह और 2021 अब तक 4 मीडियाकर्मी मारे गए है।
चीन 177वें स्थान पर है और आरएसएफ ने उसे सेंसरशिप वायरस का दुनिया में अविवादित विशेषज्ञ बताया है। उदाहरण के लिए, हांगकांग पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पारित करके, यह अब राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में बीजिंग के किसी भी आलोचक को गिरफ्तार कर सकता है। सूचना तक पहुँच पर यह मुख्यतः मेनलैंड में सख़्त नियंत्रण करता है जहाँ चीन का साइबरस्पेस प्रशासन (CAC), जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की देखरेख में काम करता है। यहाँ जानकारी को अधिक नियंत्रण में रखा जाता है और नागरिकों पर सेंसर या जासूसी भी होती है। सरकारी मीडिया माध्यम सरकारी प्रचार प्रसार को करने में अधिक व्यस्त है।
सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन की देश में सत्ता पर निरंतर पकड़ के चलते उत्तर कोरिया 179वें स्थान पर है। हाल ही में पता चला था कि देश में राज्य मीडिया ने नागरिकों को COVID-19 टीकों के विकास के मुद्दे से कराया है, संभवतः इस तथ्य के कारण कि उत्तरी कोरिया अन्य देशों के दान पर पूरी तरह से निर्भर है जो अभी भी आने में थोड़ा समय ले सकते हैं।
थाईलैंड (# 137), फिलीपींस (# 138), इंडोनेशिया (# 113), कंबोडिया (# 144), मलेशिया (# 119), म्यांमार( # 140), और सिंगापुर (#160) में यद्यपि हालात चीन या उत्तर कोरिया की तरह गंभीर नहीं है, फिर भी वहां पर प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति काफी हद तक निराशाजनक है। इन देशों में सरकार की आलोचना अक्सर फ़र्ज़ी खबर विरोधी कानूनों के तहत दंडनीय है जिनका उपयोग सरकार की इच्छा-अनुरूप किया जाता है। म्यांमार की स्थिति विशेष रूप से चिंता का विषय है, खासकर फरवरी में तख्तापलट के बाद, जिसके बाद पत्रकारों की सामूहिक गिरफ्तारी में वृद्धि हुई है।
हालाँकि, भूटान (# 65), मंगोलिया (# 68), तिमोर-लेस्ते (# 71), न्यूज़ीलैंड (# 8), ऑस्ट्रेलिया # 25), दक्षिण कोरिया (# 42) और ताइवान # 43) में स्थिति बेहतर है। इन देशों ने सरकार और मीडिया को महामारी के दौरान भी = अलग रखने में सफलता हासिल की है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका
सीरिया में (# 173), असद शासन ने पड़ोसी ईरान (# 174) और लेबनान (# 107) में बढ़ते मामलों के सबूतों के बावजूद, महामारी के दौरान कोविड -19 पर सभी सूचनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस तरह की कार्रवाइयों ने नागरिकों को मीडिया के इस्तेमाल से हतोत्साहित किया है। सऊदी अरब में (# 170), सरकार समर्थक पत्रकारों ने पाठकों और दर्शकों की संख्या में गिरावट की सूचना दी, जब जनता ने सरकारी वेबसाइटों से सीधे अपनी जानकारी प्राप्त करना शुरू कर दिया था क्योंकि दोनों अविभाज्य हैं।
क्षेत्र के कई देशों की तरह, ईरान ने कोरोनोवायरस से होने वाली मौतों की संख्या की जानकारी पर कड़ी रोक लगा दी है, ताकि सरकार की महामारी से निपटने की आलोचना को कम किया जा सके। यद्यपि सरकार की आधिकारिक मृत्यु लगभग 80,000 है, लेकिन स्वतंत्र अध्ययनों से पता चलता है कि संख्या 180,000 से अधिक हो सकती है।
उत्तरी अफ्रीका में चार देशों में प्रेस की आज़ादी- मिस्र (# 166), मोरक्को (# 136), अल्जीरिया (# 146), और लीबिया (# 165) - को बुरा या बहुत बुरा के तौर पर दर्ज किया गया है। यह पिछले दशक की शुरुआत में अरब स्प्रिंग के बाद से अभिव्यक्ति की अधिक स्वतंत्रता और सूचना तक पहुंच की मांग करने वाले लोकप्रिय आंदोलन के बाद भी जारी है। इस न्यून रैंकिंग के लिए पत्रकारों का न्यायिक उत्पीड़न, मनमानी गिरफ्तारी, अंतरिम अनंतिम हिरासत और दोषपूर्ण क़ानूनी प्रक्रिया को ज़िम्मेदार ठहराया है।
यह देखा गया है कि कई पत्रकार इस क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन करते हैं और उन्हें अक्सर सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रदर्शनकारियों के देखा जिसमें उन्हें विद्रोह, हिंसा, दंगों, या अनधिकृत प्रदर्शनों के उकसावे का ज़िम्मेदार जाता है, उदाहरणतः इराक़ (# 163) के कुर्दिस्तान में विरोध प्रदर्शन और अल्जीरिया का हिराक आंदोलन। इसमें मीडिया के खिलाफ घृणास्पर्द भाषण में वृद्धि से बढ़ावा दिया जाता है जिसमे अक्सर राजनेताओं द्वारा, जैसे कि ट्यूनीशिया (# 73), जॉर्डन (# 129) में, पत्रकारों को या तो शिक्षकों द्वारा बेरोज़गारी और विरोध प्रदर्शन की जानकारी जारी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इसी तरह, मिस्र में, अधिकारियों को कानूनी रूप से ऑनलाइन मीडिया और जेल पत्रकारों को सेंसर करने की अनुमति है, जिन्हें सरकार गलत ख़बर फ़ैलाने वाला मानती है। देश ने एक नोटिस लगाते हुए कहा था कि राज्य के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी सना वैध जानकारी की एकमात्र प्रदाता थी। ।
आरएसएफ का कहना है कि इससे क्षेत्र के पत्रकारों को 'स्व-सेंसरशिप' या प्रचार के दो समान रूप से अवांछनीय विकल्पों के बीच चयन करना पड़ता है।
उत्तरी अमेरिका
अमेरिका महामारी के दौरान तब गलत सूचना फ़ैलाने में अग्रणी बन गया था, जब कई वैकल्पिक समाचार माध्यमों ने वायरस और इसके बारे में उपचार के बारे में गलत जानकारी फैलाई। वास्तव में, इनमें से कई सिद्धांत व्हाइट हाउस आये थे जिसके दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी लगातार ऐसे झूठे दावों का समर्थन कर रहे थे।
इसके अलावा, 2020 में मीडियाकर्मियों पर हमलों की संख्या में वृद्धि हुई थी, जिसमें ब्लैक लाइव्स मैटर के विरोध के दौरान कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा किए गए आक्रामकता के कई कार्य शामिल थे।
इसके अलावा, 6 जनवरी को कैपिटोल दंगों के अपने उकसावे के मद्देनजर ट्रम्प को स्थायी रूप से प्रतिबंधित करने के ट्विटर के फैसले ने राजनीतिक चर्चा को प्रभावित करने के लिए तकनीकी कंपनियों की क्षमता को रेखांकित किया। ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान मीडिया पर अविश्वास भी बढ़ा, जब उन्होंने अपने चुनाव हारने की आधारहीन वजहों को लोगों के सामने रखा। उदाहरण के लिए, अब 56% अमेरिकियों का मानना है कि पत्रकार जानबूझकर लोगों को झूठी या बढ़ा-चढ़ा के बताई हुई खबरें पहुंचा उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
यूरोप
प्रेस की आज़ादी के मामले में यूरोप दुनिया का सर्वश्रेष्ठ क्षेत्र बना हुआ है। आरएसएफ के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स पर 20 सर्वोच्च रैंक वाले देशों में से 14 यूरोप में हैं- नॉर्वे (# 1), फिनलैंड (# 2), स्वीडन (# 3), डेनमार्क (# 4), नीदरलैंड (# 6), पुर्तगाल (# 9), स्विट्जरलैंड (# 10), बेल्जियम (# 11), आयरलैंड (# 12), जर्मनी (# 13), एस्टोनिया (# 15), आइसलैंड (# 16), ऑस्ट्रिया (# 17), और लक्समबर्ग (# 20)।
हालाँकि आरएसएफ ने महाद्वीप में कुछ चिंताजनक रुझान और घटनाओं पर ध्यान दिया। उदाहरण के लिए, हंगेरियन (# 92) राष्ट्रपति विक्टर ओरबैन ने दुनिया भर के कई अन्य देशों की तरह कोरोनावायरस के बारे में जानकारी तक पहुंच पर गंभीर प्रतिबंधों को लागू किया है, जिसमें पत्रकारों पर अक्सर झूठी खबरें फैलाने का आरोप लगाया गया है। इसी तरह के दृष्टिकोण सर्बिया (# 93) और कोसोवो (# 78) में भी अपनाए गए हैं।
महामारी के अलावा, पत्रकारों को प्रवासन जैसे विषयों को कवर करने के लिए सेंसरशिप, धमकी या सज़ा का भी सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, ग्रीस (# 70) में, पत्रकारों को कई बार गिरफ्तार किया जाता है ताकि उन्हें प्रवासियों से बात करने से रोका जा सके। यहाँ सरकार चिंतित है कि अधिक पत्रकारों की घुसपैठ और पूछताछ से सरकार की प्रवासियो के प्रति रैवये की पोल खुल जाएगी। इस तरह के प्रतिबंध कुछ देशों जैसे की पेन (# 29) में भी देखे गए थे जो सूची में काफी ऊंचे स्थान पर हैं।
पोलैंड (# 64) जैसे अन्य देशों में, राज्य के स्वामित्व वाले मीडिया आउटलेट अनिवार्य रूप से प्रचार माध्यमों में बदल दिए गए हैं, जिसमें फंडिंग को तब तक रोक दिया जाता है जब तक कि वह सरकारी आदेश की अवमानना करते है।
इसी समय, नागरिकों द्वारा पत्रकारों पर हमलों में भी वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर आत्म-सेंसरशिप हो सकती है, खासकर अगर हमलावरों को उचित रूप से दंडित नहीं किया जाता है या आसानी से बरी कर दिया जाता है। विशेष रूप से महामारी के दौरान पत्रकारों पर शारीरिक हमलों में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, जर्मनी (# 13) और इटली (# 14) में, पत्रकारों पर पुलिस और नागरिकों दोनों द्वारा हमला किया गया जब वह कोरोनोवायरस प्रतिबंध और लॉकडाउन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की कवरेज कर रहे थे।
यह स्पष्ट है कि प्रेस की आज़ादी पूर्वी यूरोपीय देशों में नहीं हैं और यह तथ्य कि यह वर्षों से ऐसा ही रहा है जिसने कुछ पत्रकारों को सरकार के खिलाफ प्रेरित किया है। उदाहरण के लिए, रूस (# 150) में, पत्रकारों ने बार-बार सरकार को कोरोनोवायरस के असली मौत के आँकड़ो को पेश करने पर मजबूर करने का प्रयत्न किया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिकारियों ने यह कहते हुए आंकड़ा संशोधित किया कि मरने वालों की संख्या आधिकारिक संख्या से तीन गुना थी। फिर भी, देश में पत्रकारों को डिसइन्फोर्मशन कानून का उपयोग करके सेंसर किया जाना जारी है।
लैटिन अमेरिका
ब्राजील (# 111) में, राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने पिछले साल स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह पिछले 24 घंटों से केवल COVID -19 संक्रमण दिखाए, ताकि महामारी से निपटने की उनकी आलोचना को कम किया जा सके। भले ही उन्होंने उस नीति बाद में हटा दिया हो, फिर भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से पत्रकारों और अपने शासन के आलोचकों की आलोचना करना जारी रखा है। उनके प्रशासन में पारदर्शिता की कमी के कारण कई मीडिया माध्यमों ने एक ऐसा गठबंधन बनाया जिससे उन्होंने देश के 26 राज्यों और ब्राज़ीलिआ के संघीय जिलों से जानकारी एकत्र की और स्वतः रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य नोटिस प्रकाशित किए।
अल साल्वाडोर आठवें स्थान पर गिरकर 82वें स्थान आ गया, जिसका ज़िम्मेदार आरएसएफ ने पारदर्शिता की कमी, सार्वजानिक स्थलों तक पहुँच की कमी, पत्रकार सामग्री की पुलिस द्वारा बरामदगी, राष्ट्रपति के महामारी सम्बन्धी सवालों का जवाब देने से इनकार और हामारी के बारे में अधिकारियों के साथ साक्षात्कार पर प्रतिबंध को ठहराया।
लगभग इसी तरह की विधियाँ गुएतमाला (# 116), इक्वाडोर (# 96), निकारागुआ (# 121), होंडुरास (# 151), और वेनेज़ुएला (# 148) में भी अपने गयी है। गुएतमाला के राष्ट्रपति, एलेजांद्रो जियामातेटी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह मीडिया को क्वारंटाइन में रखना चाहते हैं।
बोल्सनारो की तरह, कई अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के नेताओं ने मीडिया पर महामारी को गंभीरता को अनुपात से अधिक दिखाने और आतंक फैलाने का आरोप लगाया। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से पत्रकारों को कमज़ोर करने के लिए सरकार द्वारा समन्वित प्रयास पेरू (# 91), अर्जेंटीना (# 69), और कोलंबिया (# 134) में भी देखे गए हैं।
हालाँकि रिपोर्ट में अप्रत्याशित रूप से क्यूबा, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या सूचना तक सार्वजनिक पहुंच नहीं है को 171वां रैंक मिला है।
इस बीच,मेक्सिको (# 143) के राष्ट्रपति एंड्रस मैनुअल लूपेज़ ओबराडोर ने भ्रष्टाचार से निपटने के वायदे के बावजूद, उन्होंने अक्सर मीडिया रिपोर्टों और पत्रकारों की आलोचना जिससे वह सहमत नहीं हैं की आलोचना करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस का इस्तेमाल किया है। देश में पत्रकारों पर अक्सर हमला किया जाता है और उन्हें डराया जाता है, खासकर जब कथित भ्रष्टाचार या संगठित अपराध को कवर किया जाता है। पत्रकारों के खिलाफ शारीरिक हमलों के कई मामले हैती (# 87) और चिली (# 54) में भी देखे गए है। 2020 में मैक्सिको, होंडुरास और कोलंबिया में कुल 13 पत्रकार मारे गए।
उप सहारा अफ्रीका
इस साल की शुरुआत में, 14 जनवरी में युगांडा (# 125) के राष्ट्रपति चुनाव से पहले, योवेरी मुसेवेनी के नेतृत्व वाली सरकार ने सभी विदेशी पत्रकारों की प्रेस साख को रद्द कर दी था। सरकार ने जानकारी प्रकाशित करने के लिए सामग्री-साझाकरण और समाचार प्लेटफार्मों के लिए बाधाओं को भी बढ़ाया। स्थानीय पत्रकारों को धमकियाँ भी दी गयी।
आरएसएफ ने यह प्रवृत्ति पूरे क्षेत्र में मिली है जिसमे 15 मार्च और 15 मई 2020 के बीच उप-सहारा अफ्रीका में पत्रकारों पर तीन बार हमले और गिरफ्तारी हुई है, जैसा कि 2019 में इसी अवधि के दौरान हुआ था। अंत में, रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ्रीका पत्रकारों के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक महाद्वीप है।
तंज़ानिया (# 124) जैसे कई देशों में, इस रिपोर्ट से जुड़ा काम रोका गया क्योंकि सरकार ने वायरस पर जानकारी या आंकड़े जारी करने से इनकार कर दिया। एस्वातिनी (# 141) और बोत्सवाना (# 38) जैसे अन्य देशों में, अधिकारियों ने महामारी पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर आपराधिक आरोप लगाते हुए आरोप लगाया कि वे गलत खबरों को दबा रहे थे।
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (# 149), दक्षिण अफ्रीका (# 32), जिम्बाब्वे (# 130), और रवांडा (# 156) जैसे देशों में, पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया, उन्हें धमकाया गया, या भ्रष्टाचार के बारे में रिपोर्टिंग करने पर पाबंदियां लगायी गई, जैसा कि संगठित अपराध के मामलो में लैटिन अमेरिका में हुआ है। इसी तरह, नाइजीरिया (# 120) में पत्रकारों ने पिछले साल #EndSARS विरोध प्रदर्शन को कवर करते हुए गिरफ़्तार किया या मार दिया गया।
सरकारी नियंत्रण और ऑनलाइन मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के नियंत्रण में भी वृद्धि हुई है। साथ ही कई माध्यमों के मनमाने ढंग से लाइसेंस भी निलंबित कर दिए हैं।
मध्य एशिया
अज़रबैजान (# 167) और अर्मेनिया (# 63) के बीच नागोर्नो-करबाख युद्ध के परिणामस्वरूप अब तक कम से कम सात पत्रकारों की मौत हुई है।
पूरे क्षेत्र में कई इंटरनेट शटडाउन हुए है, विशेष रूप से किर्गिस्तान (# 79) जैसे विवादित चुनावों के बाद।
इंडेक्स में तुर्कमेनिस्तान 178वें स्थान पर है, जिसे सरकार द्वारा देश में कोरोनावायरस की उपस्थिति को अस्वीकार करने जैसे कई मामले है। वास्तव में, स्वतंत्र स्थानीय मीडिया वास्तव का वहां कोई अस्तित्व ही नहीं है और लोग विदेशी समाचार माध्यमों को गोपनीयता से जानकारी भेजते है।
ताजिकिस्तान में, सरकार द्वारा गलत मानी जाने वाली महामारी के बारे में कोई भी जानकारी फ़ैलाने के लिए पत्रकारों को भारी जुर्माना या कैद की सज़ा दी गई है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि पत्रकार सरकार के प्रोपेगंडा को फैला सके जिससे देश में कोरोना वायरस के पॉजिटिव या मौत के मामलों को काम से काम दिखाया जा सके।