कोविड-19 महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण लंबे समय तक आर्थिक मंदी के बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी के बाद के उछाल के करीब पहुंच रही है। जबकि अमीर देश टीकों तक अपनी व्यापक पहुंच के कारण वहां जल्दी पहुंच रहे हैं, पूर्वानुमान बताते हैं कि सरकारों द्वारा इंजेक्ट की जा रहे प्रोत्साहन पैकेज की वजह से समग्र आर्थिक मंदी एक उछाल में बदल सकती है। ऐसा होने के पीछे कारण है कि सरकारी मदद से व्यवसाय फिर से खुलते हैं और लोगों की खर्च क्षमता में वृद्धि होती है।
मॉर्गन स्टेनली ने अपने वैश्विक आर्थिक पूर्वानुमान में इस साल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 6.4% की वृद्धि की भविष्यवाणी की है। संयुक्त राज्य अमेरिका में विकास दर अनुमान 5.9% है, जो पूर्व-महामारी प्रवृत्ति से चार प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, यूरोज़ोन के लिए विकास पूर्वानुमान 5%, ब्रिटेन 5.3%, जापान 2.4%, चीन 9% और भारत 9.8% पर निर्धारित है।
हालाँकि, जबकि वित्तीय समृद्धि की आशा की जा रही है, यह पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर हो सकती है। जैसे जैसे महामारी की मंदी दुनिया भर के लोगों को अपनी सरकारों से आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने की मांग करने के लिए प्रेरितकरेगी, यह संभावना है कि पर्यावरण की दृष्टि से सतत विकास नीतियों को दरकिनार कर दिया जाएगा। यह लंबे समय में नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि कोरोनवायरस (यदि प्रयोगशाला सिद्धांत झूठे साबित होते हैं) जैसे ज़ूनोटिक रोगों की आवृत्ति बढ़े और ये अधिक हानिकारक हो सकते है, यदि स्थिरता को विकास और आर्थिक नीतियों के मूल में नहीं रखा गया है।
दरअसल, आर्थिक मंदी की अवधि के बाद पर्यावरण को ऐतिहासिक रूप से लगभग हमेशा नुकसान पहुँचाया गया है। उदाहरण के लिए, महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) की शुरुआत के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन में गिरावट आई, लेकिन 1932 से इसमें फिर से वृद्धि देखि गयी थी। इसी तरह, जीवाश्म ईंधन के दहन और सीमेंट उत्पादन में 2009 में 1.4% की गिरावट आई जब वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं 2008 के वित्तीय संकट से जूझ रही थीं। लेकिन जैसा ही आर्थिक प्रोत्साहन संसाधनों को उच्च प्रदूषण स्तर में योगदान करने वाले उद्योगों को असमान रूप से आवंटित किया गया, उत्सर्जन स्तर 2010 में 5.9% तक पहुंच गया।
इसी तरह, कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियों में ठहराव के साथ, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की जनसंख्या-भारित संकेंद्रण और पर्टिकुलेट मैटर के स्तर में लगभग 60% और 34 देशों में 31% की गिरावट आई है। हालाँकि, लॉकडाउन में ढील के साथ चीन, अमेरिका, भारत और यूरोप में वायु प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ गया है। इसके अलावा, अध्ययनों से यह भी पता चला है कि इस समय अवधि के दौरान दस्ताने, मास्क, सुई आदि जैसे एक समय के प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग ने प्लास्टिक के कचरे की मात्रा में दो गुना वृद्धि हुई है।
महामारी के बाद की दुनिया के लिए आर्थिक सुधार की योजना इस प्रकार अनिवार्य रूप से बढ़ी हुई पर्यावरणीय गिरावट को निश्चित बनाती है। चीन ने पहले ही एक ट्रिलियन-युआन राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज पेश करने के अपने इरादे की घोषणा की है जो अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए बुनियादी ढांचे के खर्च को बढ़ावा देगा और ऐसी परियोजनाएं आमतौर पर अत्यधिक कार्बन-गहन जनित होती हैं। पिछले मार्च में, चेक प्रधानमंत्री लेडी बाबिक ने यूरोप से वर्तमान समय में 'ग्रीन डील' के बारे में भूल जाने और इसके बजाय कोरोनावायरस पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। उसी महीने, पोलिश उप राज्य संपत्ति मंत्री जानुस कोवाल्स्की ने अनुरोध किया कि यूरोपीय संघ (ईयू) अपने उत्सर्जन व्यापार प्रणाली को छोड़ दें, जो ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए बनाया गया था या पोलैंड को इस योजना से छूट दे ताकि उसे महामारी से लड़ने के लिए अपने धन का खुले रूप से अनुमति मिल सके। अंततः, यूरोपीय संघ के नेता पोलैंड को शामिल करने के साथ, ग्रीनहाउस गैसों को 2030 तक 40% के बजाय 55% तक कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर सहमत हुए। पोलैंड सौदे में भाग लेने में सक्षम रहा क्योंकि यूरोपीय संघ ने इसे 'ईयू जस्ट ट्रांसफॉर्मेशन फंड' का सबसे बड़ा लाभार्थी बनाया है, जिसके माध्यम से, देश को स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने लिए 8 बिलियन यूरो मिले है।
ऐसी योजनाओं के आर्थिक लाभों का विवरण देते हुए, अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (इरेना) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कोविड-19 रिकवरी योजना की आर्थिक क्षमता को रेखांकित किया गया है जो अक्षय ऊर्जा पर निर्भर है। अध्ययन में पाया गया कि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश में वृद्धि से 2050 तक वैश्विक सकल घरेलू लाभ 98 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकता है, जो निवेश किए गए प्रत्येक 1 डॉलर के लिए 3-8 डॉलर के बीच वापस ला सकता है। यह साबित करने में सहायक था कि यह ज़रूरी नहीं है कि आर्थिक विकास के सभी रूपों से इस प्रक्रिया में पर्यावरण को नुकसान हो।
कुछ देशों ने स्वीकार किया है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए आर्थिक विकास की बलि देने की आवश्यकता नहीं है और यह कि पर्यावरणीय रूप से स्थायी तकनीकी प्रगति देशों को कम प्रदूषण के साथ उच्च उत्पादन करने में सक्षम बना सकती है। उदाहरण के लिए, फ्रांस के पोस्ट-कोविड पैकेज का एक तिहाई हरित प्रोत्साहन पर आधारित है, जबकि दक्षिण कोरिया ने अगले पांच वर्षों में ग्रीन फंडिंग पर 52 बिलियन डॉलर का खर्च करेगा, जो उसके कुल रिकवरी पैकेज के लगभग 15% के बराबर है। इसी तरह, स्वीडन ने औद्योगिक निवेश के लिए हरित राज्य ऋण गारंटी जारी की है, जबकि ऑस्ट्रेलिया पिछले साल क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य से 459 मिलियन टन अधिक कमी लाने में सक्षम हुआ था। इसी भावना में, 38 देशों के शीर्ष राजनयिकों ने सोमवार को सहमति व्यक्त की कि महामारी के बाद की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के प्रयासों को 2021 के ग्रीन ग्रोथ और ग्लोबल गोल्स 2030, या पी4जी शिखर सम्मेलन के दौरान हरित सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। इसके लिए, दक्षिण कोरिया ने ग्रीन न्यू डील के तहत 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड बनाने का वादा किया है ताकि विकासशील देशों के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर ले जाने में तेजी लाने में मदद मिल सके।
हालाँकि विकसित देशों के लिए इस तरह के आवंटन करना आसान है, एक हरित अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण को प्राप्त करना विकासशील देशों के लिए एक बड़ा संघर्ष है। उदाहरण के लिए, भारत, जो ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, खुद को भारी कमी के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करने से हिचक रहा है। मार्च में भारतीय संसद में एक निजी विधेयक पेश किया गया जो कानूनी रूप से बाध्यकारी शुद्ध शून्य प्रतिबद्धता के लिए कहता है। इसके समर्थकों का तर्क है कि इससे भारत को अरबों डॉलर के निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी। हालाँकि, आलोचक चिंतित हैं कि यह गरीबों को उनकी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में अक्षम होगा क्योंकि नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा पैदा करने की लागत वर्तमान में जीवाश्म ईंधन के उपयोग की तुलना में कहीं अधिक है। इसके अलावा, ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले सप्ताह के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, देशों ने सहमति व्यक्त की कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में विकासशील देशों में अधिक समय लगेगा, जो अभी तक चरम उत्सर्जन तक नहीं पहुंचे हैं। इसका कारण यह है कि यह देश अभी भी अपने औद्योगीकरण के दौर में हैं। औद्योगीकरण, साथ में प्रदूषण की परवाह किए बिना, आम तौर पर गरीबी उन्मूलन और विकास की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है। विकासशील देशों का तर्क है कि वह अब भी उस प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं जिससे अमीर देश पहले ही गुज़र चुके हैं।
जबकि इस परिवर्तन तक पहुँचने के लिए अभी भी बाधाएं मौजूद हैं, विकासशील देशों को इस तरह के सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों के खतरे से बचाव के लिए नवाचार और स्थिरता में निवेश को बढ़ाकर और उनके संबंधित आर्थिक प्रभावों को अधिक बार होने से बचाने पर ध्यान देना चाहिए। प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में बुनियादी ढांचे के लिए समर्पित बड़ी मात्रा में धन इस बात पर प्रकाश डालता है कि संसाधन दक्षता पर दीर्घकालिक लक्ष्यों के साथ बुनियादी ढांचा योजनाओं में निवेश करने का अवसर है। इसे अमल में लाना विकासशील देशों के लिए बहुत कठिन हो सकता है, लेकिन इनकी भावी विकास नीतियों के मूल में स्थिरता को रखने की दिशा में लगातार छोटे कदम उठाए जाने चाहिए।